Monday, March 20, 2023
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27 नक्षत्रों का जातक के जीवन पर प्रभाव, जानें नक्षत्रों और उनके चरणों के नाम, पढ़ें पूरी Detail

नक्षत्र का महत्व (importance of constellation) : भारतीय ज्योतिष में नक्षत्रों का महत्वपूर्ण स्थान है। किसी भी जातक के जन्म से लेकर मृत्यु तक 16 संस्कारों में नक्षत्र की भूमिका बेहद अहम होती है। सामान्यतया जिसे मुहूर्त कहा जाता है उसके मूल में नक्षत्र ही हैं।

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नक्षत्र का महत्व (importance of constellation) : भारतीय ज्योतिष में नक्षत्रों का महत्वपूर्ण स्थान है। किसी भी जातक के जन्म से लेकर मृत्यु तक 16 संस्कारों में नक्षत्र की भूमिका बेहद अहम होती है। सामान्यतया जिसे मुहूर्त कहा जाता है उसके मूल में नक्षत्र ही हैं। जिस किसी भी जातक के जन्म के समय चंद्र जिस नक्षत्र में होता है, उसे उसका जन्म नक्षत्र माना जाता है, वहीं वह नक्षत्र पूरी तरह या आंशिक रूप से जिस राशि में होता है उसे उस जातक की जन्म राशि कही जाती है।

भारतीय ज्योतिष (Indian astrology) में नक्षत्रों का व्यापक अध्ययन किया जाता है। माना जाता है कि नक्षत्र जातक की  कुंडली में अपनी स्थिति के अनुसार शुभ-अशुभ फल की सूचना देते हैं।

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नक्षत्र का अर्थ (Meaning of Constellation) –

नक्षत्र की संस्कृत भाषा में “न क्षरति, न सरति, इति नक्षत्र” के रूप में व्याख्या की गई है। अंग्रेजी में इसे Constellation कहा जाता है।

नक्षत्रों को सूर्य, मंगल, चंद्र या अन्य ग्रहों की तरह इकाई नहीं माना जाता है, बल्कि नक्षत्र कुछ तारों के समूह का विशिष्ट नाम है।

नक्षत्र-राशियों के बीच संबंध (Relationship between Constellations)

नक्षत्र 27 माने गए हैं और राशियों 12 होती हैं। जब इन 27 नक्षत्रों के 12 से भाग दिया जाता है तो प्रत्येक राशि में सवा दो नक्षत्रों की परिकल्पना की गई है। क्रांति वृत्त के 360 अंशों को बारह राशियों में विभाजित किया गया तो हर राशि में 30 अंश आए, वहीं जब 27 नक्षत्रों से विभाजित किया गया तब प्रत्येक नक्षत्र को 13.20 अंश मिले। गणना करने में आसानी हो इसलिए हर नक्षत्र को चार चरणों में विभाजित किया गया है, उनके 13.20 अंशों को 4 से विभाजित करने पर हर चरण को 3 अंश 20 कला प्राप्त हुए।

नक्षत्रों के देवता और स्वामी ग्रह (Constellation Deities and Lord Planets)

क्र. नक्षत्र देवता स्वामी चरण
1. अश्विनी अश्विनीकुमार केतु चू, चे, चो, ला
2. भरणी यम (काल) शुक्रवार ली, लू, ले, लो
3. कृत्तिका अग्नि सूर्य अ, इ, उ, ए
4. रोहिणी ब्रह्मा चंद्र ओ, वा, वी, बू
5. मृगशिरा चंद्र मंगल बे, बो, का, की
6. आर्द्रा रूद्र राहु कू, घ, ड, छ
7. पुनर्वसु आदित्य गुरु के, को, ह, ही
8. पुष्य बृहस्पति शनि हू, हे, हो, डा
9. आश्लेषा सर्प बुध डी, डू, डे, डो
10. मघा पितर केतु मा, मी, मे, मो
11. पूर्वा फाल्गुनी भग शुक्र मो ट, टी, टू
12. उत्तरा फाल्गुनी अर्यम सूर्य टे, टो, पा, पी
13. हस्त सूर्य (सविता) चंद्र पू, ष, ण, ठ
14. चित्रा विश्वकर्मा मंगल पे, पो, रा, री
15. स्वाति मरूत राहु रू, रे, रो, ता
16. विशाखा इंद्र-अग्नि गुरु ती, तू, ते, तो
17. अनुराधा मित्र शनि न, नी, नू, ने
18. ज्येष्ठा इंद्र बुध नो, य, यी, यू
19. मूल निऋति केतु ये, यो, भ, भी
20. पूर्वाषाढ़ा जल शुक्र भू, ध, फ, ढ
21. उत्तराषाढ़ा विश्वेदेव सूर्य भे, भो, जू, जी
22. श्रवण विष्णु चंद्र खि, खू, खे, खो
23. धनिष्ठा वसु मंगल ग, गी, गू, गे
24. शतभिषा वरूण राहु मो, सा, सी, सू
25. पूर्वभाद्रपद अजैकपाद गुरु से, सो, दा, दी
26. उत्तराभाद्रपद अहिर्बुध्न्य शनि दु, थ, झ, त्र
27. रेवती पूषा बुध दे, दो, चा, ची

ज्योतिषशास्त्र के आधार पर हर ग्रह को 3-3 नक्षत्रों का अधिकार दिया गया है।

नोट – यहां 27 नक्षत्रों के बारे में बताया गया है, लेकिन एक अन्य नक्षत्र का भी समावेश किया जाता है, जिसे अभिजित नक्षत्र कहा गया है।

ज्योतिष शास्त्र में 27 नक्षत्रों उल्लेख होता है, लेकिन ज्योतिष विशेषज्ञ उत्तराषाढ़ा नक्षत्र की 15 और श्रवण नक्षत्र की प्रारंभ की 4  घड़ियों को मिलाकर 19 घड़ी की अभिजित नक्षत्र की गणना भी करते हैं। 19 घटी वाला यह अभिजित नक्षत्र सर्वथा शुभ माना जाता है। भगवान श्रीराम का अवतरण इसी मुहूर्त में माना गया है।

नक्षत्रों के गुण (Properties of Constellations)

नक्षत्रों के गुणों के बारे में महर्षि पतंजलि अनुसार हर नक्षत्र में सत्व, रज या तम कोई एक गुण होता है। जैसा कि सभी जानते हैं इन तीनों गुणों का विशेष महत्व बताया गया है। जिसे सात्विक गुण, राजसिक गुण और तामसिक गुण कहा जाता है।

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नक्षत्रों के 9 भेद (9 Distinctions of Constellations)

नक्षत्रों की तारा 9 प्रकार की मानी गई है, जन्म, संपत, विपत, क्षेम, प्रत्यरि, साधक, वध, मित्र, अतिमित्र। ये नाम ही इन ताराओं के मायने प्रदर्शित करते हैं। जन्म नक्षत्र से इष्ट दिवस तक नक्षत्र की संख्या गिनकर उसमें 9 का भाग देने पर शेष तुल्य तारा ज्ञात होती है। 3, 5, 7 संज्ञावाली तारा के अलावा अन्य 1, 2, 4, 6, 8, 0 शुभ मानी गई हैं।

नक्षत्र पंचक या पंचक (Nakshatra Quintet or Quintet)

भारतीय ज्योतिष के अनुसार 5 नक्षत्रों को पंचक की संज्ञा दी जाती है। इन नक्षत्रों के दौरान शुभ कार्य करना निषेध माना गया है। इन नक्षत्र पंचकों में धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वभाद्रपद, उत्तरभाद्रपद, रेवती शामिल हैं।

नक्षत्र फल

किसी भी नक्षत्र में कोई ग्रह एक जैसा फल नहीं देता है। ग्रह विशेष नक्षत्र के किस चरण में स्थित है औस उस चरण विशेष का स्वामी ग्रह कौन है। उस चरण और स्वामी ग्रह से नक्षत्र स्थित ग्रह के संबंध कैसे हैं, दोनों शुभ अथवा अशुभ हैं, मित्र हैं या शत्रु हैं आदि का अध्ययन करने के बाद ही फल का विचार किया जाता है।

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