लॉन्च से पहले स्पॉट हुई Maruti e-Vitara, जानें क्या-क्या हैं इसके फीचर्स?

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गढ़ के गोठ में वरिष्ठ पत्रकार डॉ. नीरज गजेंद्र जीवन के किस अंधकार में रोशनी लाने का संकल्प लेने कह रहे

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डॉ. नीरज गजेंद्र: मृत्यु का शोक अपार होता है। उससे कहीं बड़ा होता है मृत्यु से परे जाकर किसी को जीवन देना। जब किसी परिवार का सदस्य अकस्मात काल का ग्रास बनता है। तब वे दो विकल्पों के बीच खड़े होते हैं अपार पीड़ा में डूबे रहना या अपने प्रियजन की मृत्यु को किसी और के जीवन का आधार बना देना। अंगदान इसी दूसरे विकल्प का साहसी निर्णय है। अक्सर, जब कोई ब्रेन डेड घोषित होता है। तो परिजन के पास कुछ ही घंटे होते हैं। वे एक ऐसे मोड़ पर होते हैं, जहां दर्द, असमंजस और भविष्य का खालीपन उन्हें जकड़ लेता है। ऐसे समय में यदि वे यह सोचें कि उनके प्रियजन की धड़कन किसी और के सीने में गूंज सकती है। उनकी रोशनी किसी और की आंखों में चमक सकती है। तो मृत्यु केवल एक अंत नहीं रह जाती। वह पुनर्जन्म का माध्यम बन जाती है।

29 जनवरी, एक सामान्य दिन था। जेईई की परीक्षा देकर आर्यंश आडिल अपने घर लौट रहा था। उसके सपनों की उड़ान अभी शुरू ही हुई थी। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। रायपुर में महादेव घाट पुल के पास एक दुर्घटना ने उसकी दुनिया को हमेशा के लिए बदल दिया। सिर में गहरी चोट के कारण डॉक्टरों ने उसे ब्रेन स्टेम डेथ घोषित कर दिया। यह क्षण किसी भी माता-पिता के लिए असहनीय होता है। जब उम्मीदें टूटती हैं। जब भविष्य अंधकारमय हो जाता है। जब अपनों का स्पंदन थम जाता है। तब जीवन असहनीय हो जाता है। लेकिन आर्यंश के माता-पिता असीम और वर्षा आडिल ने इस असहनीय पीड़ा को मानवता की सेवा में बदलने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने बेटे की इच्छा को पूरा करने का साहस दिखाया। अंगदान का संकल्प लिया।

आर्यंश के अंगदान ने तीन युवकों को नया जीवन दिया। उसकी एक किडनी एम्स में भर्ती 21 वर्षीय युवक को, दूसरी किडनी रामकृष्ण अस्पताल के 24 वर्षीय युवक को और लिवर एक अन्य जरूरतमंद को मिला। इस तरह, आर्यंश का अस्तित्व केवल स्मृतियों में नहीं, बल्कि इन तीन नए जीवनों में जीवित रहेगा। छत्तीसगढ़ में यह 11वां अंगदान था। इससे पहले, डोंगरगढ़ की 25 वर्षीय छात्रा निहाली टेम्भुरकर ने भी अपने अंगदान से दो लोगों को नया जीवन दिया था। यह घटनाएं केवल खबर नहीं, बल्कि एक बड़ा संदेश हैं—कि जीवन केवल जीने तक सीमित नहीं, बल्कि देने और बचाने का भी नाम है।

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आर्यंश आज हमारे बीच नहीं है, लेकिन वह तीन नए जीवन में सांस ले रहा है। उसके माता-पिता का साहस हमें एक नया दृष्टिकोण देता है, कि जीवन केवल अपने लिए नहीं बल्कि औरों के लिए भी होना चाहिए। अंगदान केवल एक संकल्प नहीं, यह एक नई रोशनी है जो किसी के बुझते जीवन को फिर से प्रकाशित कर सकती है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक-राजनीतिक रणनीतियों के विश्लेषक हैं)

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