केतु (Ketu) के प्रभाव एवं उपाय: “नवग्रहों में से एक ग्रह केतु भी है और इसे भी राहु की तरह ही “छाया ग्रह” माना गया है। केतु का वाहन कबूतर है। और वे शुद्र जाति के ग्रह हैं। यह धूम्र वर्ण का है। ज्योतिष में केतु के अन्य नामों में शिखी, ध्वज, धूम्र, मृत्यु पुत्र और अनिल भी है। केतु के अन्य ग्रहों से संबंधों पर चर्चा की जाए तो बुध, शुक्र, शनि, राहु इसके मित्र, वहीं सूर्य, चन्द्र, मंगल शत्रु हैं। गुरु के साथ केतु का संबंध सम है।
प्रथम भाव में केतु
लग्न में केतु होने से ज्यादातर अशुभ फल ही मिलते हैं। सिंह राशि का केतु लग्न में हो तो राजा की तरह मान-सम्मान, सुख-सम्पत्ति प्राप्त होती है। मकर या कुंभ राशि का केतु होने से सम्पत्ति की प्राप्ति होती है। अगर केतु लग्न में शुक्र और चन्द्रमा से युक्त हो तो जातक प्रेम विवाह रचाता है, मात्र केतु के साथ चन्द्र लग्न में हो तो जातक को बोलतने में कुछ कठिनाई होती है। नीच शत्रु राशि में या पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट केतु जातक के विचारों को दूषित करता है। लग्नस्थ केतु होने से जातक का अनबन होता रहता है। ऐसा केतु जातक को दुर्जनों से भय और मन में घबराहट देता है। ऐसा जातक को स्त्री को लेकर चिंतित रहता है। किसी न किसी रोग से पीड़ित रहता है।
दूसरे भाव में केतु
धन भावस्थ केतु यदि मेष, मिथुन, कन्या और वृश्चिक राशि में हो तो शुभ फल देता है। केतु जब किसी स्वगृही ग्रह के साथ होता है तो उसकी शक्ति को बढ़ा देता है। इसके चलते उस ग्रह या भाव से मिलने वाले फलों में भी वृद्धि हो जाती है। अन्य राशियों में या पाप प्रभाव में आया केतु हानि कराता है। काफी कोशिश करने के बाद भी धन संचय नहीं कर पाता है। किसी न किसी भय से वह प्रभावित होता है। परिवार के लोग विरोध में रहते हैं। शिक्षा को लेकर असमंजस की स्थिति रहती है।
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तीसरे भाव में केतु
तीसरे भाव में केतु के रहने से जातक स्थिर चित्त का होता है। शुभ प्रभाव में केतु के होने से शुभ फल मिलते हैं। केतु यदि मीन राशि में हो तो जातक धार्मिक प्रवृत्ति का होता है। सिंह या धनु में होने से जातक रोगों से पीड़ित रहता है। तीसरे भाव में केतु को भाइयों के लिए अशुभ माना गया है। यह पराक्रमी होता है। किसी न किसी से विवाद होता रहता है।
चौथे भाव में केतु
कुंडली के सुख भाव में केतु हो तो जातक को मातृ सुख नहीं मिलता तथा धन भी नहीं मिलता। ऐसे जातक को जन्मभूमि छोड़कर परदेश रहना पड़ता है तथा उसे चिन्ता लगी ही रहती है। हीनभावना से ग्रस्त हो सकता है। कुछ न कुछ तकलीफ से प्रभावित रहता है। धनु या मीन राशि में सुख भावस्थ केतु अच्छी सम्पत्ति का लाभ कराता है। ऐसे जातक का मन-मुटाव चलता रहता है। चतुर्थेश केतु वृश्चिक या सिंह राशि में हो तो जातक को माता-पिता एवं मित्रों का सुख मिलता है।
पांचवें भाव में केतु
पंचम भाव केतु भी शुभ फल प्रदान नहीं करता है। जातक को विद्या से वंचित होना पड़ता है। किसी न किसी भय से ग्रसित होता है तथा दूसरे की यात्रा करने की इच्छा होती है। घर-परिवार में क्लेश होते हैं। जीविका के लिए कठिन संघर्ष करना पड़ता है। पेट संबंधी रोग से प्रभावित होता है। जादू-टोने में विश्वास रखने वाला होता है।केतु एवं पंचमेश बलवान हो तथा सिंह, धनु, मीन या वृश्चिक राशि का हो तो शुभ फल देता है। शिक्षा अच्छी मिलती है। ऐसे जातकों की वाणी प्रभावशील होती है।
छठे भाव में केतु
छठे भाव में केतु हो तो जातक का मामा पक्ष से बैर रहता है। अपमान का सामना करना पड़ता है। रोग हो सकता है। जातक का शत्रु स्वयं नष्ट हो जाता है। पशु-पक्षियों से ऐसे जातकों को प्रेम होता है। धन लाभ के अवसर मिलते रहते हैं। इतने पर भी जातक का मन दुर्बल होता है।
सातवें भाव में केतु
सप्तमस्थ केतु होने से जातक को निर्धन हो सकता है। विवाह में विघ्न आते हैं। मन में घबराहट रहती है, अपमान का सामना करना पड़ सकता है. वृश्चिक राशि का केतु शुभ फल देता है। कठोर परिश्रम के बाद ही सफलता मिलती है। विवाह में विलंब होता है।जीविका के लिए जातक को भागदौड़ करना पड़ता है। आय की अपेक्षा व्यय बढ़ा रहता है। दाम्पत्य जीवन सुखी नहीं होता है। संतान पक्ष को लेकर चिंतित रहता है।
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आठवें भाव में केतु
केतु अशुभ प्रभाव में हो तो जातक को आकस्मिक घटनाओं का भय बना रहता है।परिवार में कलह बनी रहती है। केतु शुभ प्रभाव में हो तो उपर्युक्त फल नहीं मिलते, अपितु शुभ फल मिलते हैं। आठवे भाव में केतु शुभ फलदाता नहीं होता। ऐसे जातक को अक्सर बीमारी होती रहती है। कारोबार में दिक्कतें आती हैं। उधार की रकम आसानी से वापस नहीं मिलती है। वृश्चिक राशि का केतु शुभ फल देता है।
नवम भाव में केतु
नवम भाव में केतु हो तो ऐसा जातक हर किसी का विरोधी होता है। कई बार विवादों का सामना करना पड़ता है। ऐसे जातकों के विचार उच्च होते हैं। इन जातकों को दुख सहने पड़ते हैं। वृश्चिक राशि का केतु न हो तो जातक पापकर्म में लिप्त रहने वाला पितृ सुख से वंचित होता है। लोग इसका तिरस्कार भी कर सकते हैं। वृश्चिक राशि का या शुभ प्रभाव में नवमस्थ केतु हो तो जातक के समस्त दुखों का नाशन हो जाता है। रोग से पीड़ित हो सकता है।
दसवें भाव में केतु
दशम भाव में केतु स्थित हो तो ऐसा जातक परिश्रमी और संघर्ष करने वाला होता है। ऐसे जातक को उत्तर आयु में सुख मिल जाते हैं। उसे पिता का सुख कुछ समय के लिए प्राप्त होता है। दुर्घटना का शिकार हो सकता है। केतु मिथुन, सिंह, मकर व कुंभ राशि में हो तो जातक शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है। केतु मीन या धनु राशि में हो तो जातक को उत्तम धन वैभव एवं मान-सम्मान, सुख संपत्ति की प्राप्ति होती है। कारोबार में हानि का सामना करना पड़ सकता है। ।
ग्यारहवें भाव में केतु
ग्यारहवें भाव में केतु हो तो ऐसा जातक सरल, मृदु वाणी वाला होता है। हंसी मजाक करने के कारण लोग इनके साथ रहना पसंद करते हैं। ऐसा जातक विद्वान होता है। वह अपना जीवन ढंग से व्यतीत करता है, लेकिन संतुष्ट नहीं होता है। केतु मेष, वृष, धनु एवं मीन राशि में हो तथा शुभ ग्रहों- बृहस्पति व शुक्र आदि से दृष्ट हो तो शुभ फलों को देने वाला होता है। परिश्रम से धन प्राप्ति करता है।
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बारहवें भाव में केतु
व्यय भाव में केतु स्थित हो तो जातक सत्संग में जाने वाला, धर्म-कर्म में प्रवृत्त होता है। कर्ज के कारण परेशान हो सकता है। बृहस्पति केतु में शुभ योग करता हो तो जातक साधु स्वभाव का होता है। केतु शुक्र के साथ हो तो जातक शक्ति का साधक होता है। केतु चन्द्रमा से अशुभ योग करता हो तो जातक व्याभिचारी होता है। केतु पाप राशि में हो तो पूर्ण जीवन संघर्ष करने पड़ते हैं। अनजान लोगों से भय बना रहता है।
केतु के उपाय
केतु का अशुभ प्रभाव कम करने के लिए चरित्रवान बनें। गाय दान करें। काले तिल नदी में प्रवाहित करें। गणेश चतुर्थी का व्रत रखें। कुत्ते को रोटी खिलाएं।
डिस्क्लेमर : यह जानकारी विभिन्न स्रोतों से एकत्रित की गई है, इनकी पुष्टि babapost.in नहीं करता है।अतः ज्योतिष विशेषज्ञ से अवश्य संपर्क कर लें।)
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