कुंडली में राहु का प्रभाव (Effect of Rahu in Kundli)
राहु के प्रभाव और उपाय: ज्योतिष के अनुसार सूर्य व चन्द्र को लगने वाला ग्रहण राहु-केतु के द्वारा किए गये आक्रमणों की प्रतिक्रिया मानी गई है। लेकिन राहु एवं केतु को नवग्रह में स्थान मिला आ है। राहु-केतु प्रत्यक्ष न होने पर भी इसका सृष्टि के जीवन पर प्रभाव पड़ता है। राहु दैत्य वंश, श्याम वर्ण और चाण्डाल जाति का अति अधम व निकृष्ट ग्रह है। अराजकता का यह कारक ग्रह है। राहु ग्रह का वाहन सिंह है। राहु के अन्य नाम इस प्रकार हैं जैसे-तम, असुर, अगु, स्वार्भानु, विद्युन्तुद, भुजंग, कपिलाश, सर्प भी हैं। अगर राहु के साथ केतु भी एक भाव में अधिक हो तो राहु बलवान हो जाता है। राहु का एक राशि में डेढ़ वर्ष तक निवास होता है।
ज्योतिष शास्त्र ने राहु-केतु को भी मान्यता छाया ग्रह कहा गया है। ये अनिष्ट का सूचक हैं। जिस जातक पर इनका अनिष्ट प्रभाव होता है उसका नाश करते हैं। बुध, शुक्र, शनि और केतु आदि राहु के मित्र और सूर्य, चन्द्र, मंगल इनके शत्रु हैं।
प्रथम भाव में राहु (Rahu in first house)
लग्न भाव में राहु का होना महत्वपूर्ण माना गया है। जिस जातक के लग्न होता है, वह गरीबी में भी जन्म लेकर उच्च स्थान प्राप्त कर लेता है। शिक्षा की ओर विशेष नहीं होती, वह लापरवाह होता है। लग्न में राहु पुरुष राशि का हो तो जातक की कुण्डली में द्विभार्या योग बनता है, किन्तु स्त्री राहु होने से एक ही विवाह होता है। लग्न में मेष का राहु जातक को उदार बनाता है। सिंह का राहु हो तो जातक दयावान होता है। राहु धनु राशि में हो तो जातक को दूसरे व्यक्तियों से विलग करता है। राहु लग्न में मकर या मीन राशि का हो तो ऐसा जातक दूसरों के कार्य में अड़ंगा डालता है। मिथुन, तुला या कुंभ राशि का राहु जातक को दूसरे के कार्य में कमी निकालने वाला बनाता है।
दूसरे भाव में राहु (Rahu in Second house)
दूसरे भाव में राहु हो तो जातक की धन संबंधी स्थिति ठीक नहीं होती है। ज्योतिष में दूसरे भाव को मुख कहा गया है, आजीविका के लिए कष्ट झेलता है। दूसरे शहर में जाकर ही आजीविका प्राप्ति में सफलता मिलती है। ऐसा जातक जो भी कार्य करता है, उसमें दिक्कतें आती हैं। पाप प्रभाव में आया धन भावस्थ राहु जातक की वाणी में विकार उत्पन्न करता है। मिथुन, कन्या और कुंभ राशियों में राहु प्राय: शुभ फल करता है। सिंह राशि में राहु हो तो जातक को धन की प्राप्ति होती है। स्त्री राशियों में स्थित राहु पैतृक संपत्ति प्रदान करता है। पुरुष राशियों में राहु के स्थित होने से जातक को धन संबंधी दिक्कत होती है।
तीसरे भाव में राहु (Rahu in Third house)
तीसरे भाव में राहु को शुभ माना है। जिस जातक के सहज भाव में राहु हो, वह साहसी होता है। शत्रु पस्तहो जाते हैं। सिंह राशि का राहु विशेष फलदायक माना गया है। इस स्थान में राहु के रहने से जातक मानसिक तनाव से ग्रसित रहता है। इसके फल शनि की तरह होते हैं। भाई बंधुओं के लिए इस भाव का राहु अशुभ फल देता है।
चौथे भाव में राहु (Rahu in Fourth house)
मेष, वृष, मिथुन, कर्क और कन्या राशि का चतुर्थ राहु अच्छा फल देता है। ऐसा जातक अधिक प्रवास करता है तथा जीवन के छत्तीसवें वर्ष तक उसे सफलता मिलती है। पुरुष राशि का राहु चतुर्थ भाव में हो तो द्विभार्या योग बनता है। मंगल राहु के साथ स्थित होकर यदि शनि चन्द्रमा से अशुभ योग करे तो जातक विष खाकर आत्महत्या कर लेता है। मिथुन, सिंह या कन्या राशि का राहु हो तो जातक को दूसरा विवाह करना पड़ता है। माता-पिता की मृत्यु हो जाती है। चतुर्थेश के साथ राहु हो या शनि व राहु चौथे भाव में हो तो दरिद्रता प्रदान करते हैं। यदि सूर्य, मंगल के साथ हो तो वह भी दरिद्रता का वास होता है। स्त्री राशि का राहु हो तो जातक का एक ही विवाह होता है। पत्नी आज्ञाकारिणी मिलती है। व्यवसाय में हानि उठानी पड़ती है, लेकिन नौकरी या साझे के व्यापार में लाभ रहता है। चतुर्थ भाव माता का भाव होता है, ऐसे स्थानों में राहु जैसे पाप ग्रह की स्थिति माता के स्वास्थ्य को नरम रखती है। चतुर्थ राहु सौतेली माता तथा दूसरी पत्नी के आने की सूचना भी देता है।
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पांचवें भाव में राहु (Rahu in Fifth house)
गृह क्लेश से परेशानी बनी रहती है, अपच एवं हृदय रोग की सम्भावना बढ़ जाती है। स्त्री एवं सन्तान सुख में प्राय: राहु बाधाकारक ही बनता है। स्त्री मिल भी जाए, तो रोगी बनी रहती है। यदि राह अत्यधिक पाप प्रभाव में हो तो विवाह प्रतिबंधक योग बनता है। दो विवाह होते हैं तथा पुत्र सुख मिलता है। जातक सन्तानाभाव से पीड़ित होता है तथा नीच लोगों की संगति में प्रसन्न रहता है। उसे राज्य की ओर से दण्ड मिलने का भय रहता है। चन्द्रमा के साथ अशुभ योग में राहु हो तो सन्तान होती ही नहीं। ऐसे जातक के जीवन में प्राय: कम ही सहायक होते हैं। इतने पर भी वह हार नहीं मानता। पुरुष राशि में राहु होने से जातक को घमण्डी बना देता है। फलत: असफल ही रहते हैं। स्त्री राशि में राहु की स्थिति जातक को शन्तिप्रिय बनाती है।
छठवें भाव में राहु (Rahu in Sixth house)
स्त्री राशि का राहु छठे भाव में हो तो शुभ प्राप्त होता है। शरीर निरोगी व स्त्री पति की सेवा करने वाली मिलती है, लेकिन नौकरी के लिए यह राहु अच्छा नहीं है अगर रिपु भाव में राहु हो तो जातक शत्रुओं के लिए काल होता है। व्यवसाय करने की इच्छा होती है। बचपन अभाव में व्यतीत होता है। प्रेत व्याधि व नख विष जैसी व्याधियों से ऐसा जातक पीड़ित रहता है। कमर में वात के कारण दर्द, मिरगीआदि विकार भी छठे राहु के फल होते हैं। ।
7वें भाव में राहु (Rahu in Seventh house)
सप्तम भाव में राहु हो तो अशुभ फल मिलते हैं। ऐसे जातक का विवाह नहीं होता। सामान्यतया सप्तमस्थ राहु निम्न फल अनुभव में आते हैं – देर से विवाह, अन्तर्जातीय जीवन साथी, अधिक आयु वाली स्त्री, विवाहेत्तर संबंध बनाना जोड़ना या विवाह ही नहीं होना आदि। राशि में राहु शुभ फल देता है, विवाह शीघ्र हो जाता है तथा प्रेम भी बना रहता है।
8वें भाव में राहु (Rahu in 8th house)
राहु जिस राशि में स्थित होता है, उसी के अनुसार फल प्रदान करता है। इतने पर भी इसमें शनि की तरह गुण रहते ही हैं और यह पाप ग्रहों की श्रेणी में गिना जाता है। राजकीय नौकरी में शीघ्र ही पकड़ा जाता है और दण्ड भी भोगता है। मृत्यु मूर्छित अवस्था में होती है। स्त्री राशि का राहु हो तो प्रायः उलटे फल मिलते हैं। पत्नी अच्छी मिलती है, लेकिन जीवन के अंतिम समय में विधुर जीवन यापन करना पड़ता है। प्राय: ऐसे जातक स्वतंत्र व्यवसाय करते हैं अगर राहु पुरुष राशियों में से किसी में हो तो दाम्पत्य जीवन नरक तुल्य होता है, क्योंकि स्त्री कलहकारिणी होती है। ऐसे जातक को नैतिक अनैतिक का विचार त्यागकर मात्र धन संचय करने करता है।
9वें भाव में राहु (Rahu in 9th house)
राहु अग्नि राशि में हो तो जातक व्यवहारिक होता है तथा दूसरों के मान सम्मान व संतान की चिन्ता रहती है। पुत्र संतान के लिए दूसरा विवाह करना पड़ता है। राहु स्त्री राशि में हो तो कष्ट ज्यादा होने की संभावना बनी रहती है। अगर नवम भाव में राहु हो तो जातक की विदेश में कारोबार शुरू कर सकता है, लेकिन सफलता में संदेह हो सकता है। उसे सफलता नहीं मिलती। ऐसे जातक को प्राय: भाई नहीं होते । फलतः जातक पिता की इकलौसी सन्तान होता है। ऐसा जातक अपनी स्त्री से प्रेम रखता है।
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10वें भाव में राहु (Rahu in 10th house)
दसवें भाव में राहु हो तो जातक की राजनीतिक हो सकता है। शुभ योग होने पर राजनीतिक में सफलता भी मिलती है। पिता का सुख कम मिलता है तथा रोग होते हैं। यदि राहु मीन राशि में हो तो जातक कामुक होता है तथा पर स्त्री से सम्बन्ध जोड़ता है। पुरुष राशि में हो तो जातक अभिमानी अधिक बोलने वाला तथा लोगों से विलग रहने वाला होता है। राहु स्त्री राशि में हो तो सम्पत्ति नहीं मिलती। ऐसे जातक की पूर्व आयु में कष्ट भोगने के बाद प्रगति होती है।लग्न, लग्नेश, देशम व दशमेषा को जब छाया ग्रह प्रभावित करता है तो ऐसा जातक राजनीतिज्ञ होता है।
11वें भाव में राहु (Rahu in 11th house)
11वें स्थान में राहु हो तो संतान के लिए दिक्कत वाला हो सकता है। आयु छोटी होती है। वह दूसरे के धन पर नजर रहती है। शासकीय कर्मचारी हो तो भ्रष्टाचारी हो सकता है। लाभ के अवसर मिलते रहते हैं तथा वह समाज में नेतृत्वकर्ता बनकर रहता है। राहु स्त्री राशि में हो तो उपरोक्त कार्यों से धन संग्रह हो जाता है। पुत्र की अपेक्षा पुत्री सन्तान अधिक होती है। तंत्र-मंत्र की ओर रूझान हो सकता है।
12वें भाव में राहु (Rahu in 12th house)
व्यय भाव में राहु हो तो जातक कई प्रकार के रोगों से ग्रसित होता है। राहु स्त्री राशि में हो तो प्राय: शुभ फलों का ही अनुभव होता है, लेकिन दूसरी शादी हो सकती है। बेकार का खर्च भी करता है। शत्रुओं की संख्या में वृद्धि हो जाती है। व्याभिचार में लिप्त होता है।
राहु दोष मुक्ति के उपाय
लाल किताब (Lal Kitab) के उपाय के अनुसार राहु की शांति के लिए जातक मसूर की दाल दान करें। विशेषज्ञ ज्योतिषी से सलाह के बाद गोमेद धारण करें। चांदी की रिंग धारण करें। राहु की प्रसन्नता के लिए गोमेद रत्न, नीला वस्त्र, कम्बल, तिल, तेल, लौहा दान करना चाहिए। इसके अलावा सरसों का दान करें। मां सरस्वती की आराधना करने के साथ ही परिवार के लोगों से सदभाव रखें। कोयला बहते पानी में बहाएं।
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