नई दिल्ली. समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) का मुद्दा इन दिनों देश में गर्माया हुआ है। केंद्र की दलीलों के के बाद अदालत ने केंद्र सरकार से पूछा है कि वह समलैंगिक शादी को मान्यता दिए बिना इन जोड़ों को कैसे सुरक्षा और बैंक खातों, बीमा व दाखिलों में सामाजिक लाभ दिया जा सकता है? इधर, केंद्र ने कोर्ट को बताया कि समलैंगिक विवाद दुनिया के महज 34 देशों में वैध हैं, जिसके माध्यम अलग-अलग हैं।
वहीं केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि समलैंगिक विवाहों को मान्यता देने वाली संवैधानिक घोषणा इतनी सरल नहीं है। इस तरह की शादियों को मान्यता देने के लिए संविधान, IPC, CrPC, CPC और 28 अन्य कानूनों के 158 प्रावधानों में संशोधन करने होंगे।
इधर संविधान पीठ ने माना है कि केंद्र की इन दलीलों में दम है कि सेम सेक्स मैरिज को मान्यता देने संबंधी कानून पर विचार करने का अधिकार विधायिका का है। लेकिन अदालत ये जानना चाहती है कि सरकार ऐसे जोड़ों की समस्याओं के मानवीय पहलुओं पर क्या किया जा सकता है?
गुरुवार को छठे दिन की सुनवाई में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कानूनों के प्रावधानों की सूची रखी। उन्होंने शीर्ष कोर्ट को बताया कि अगर संविधान पीठ समान लिंग विवाहों को मान्यता देते हुए स्पेशल मैरिज एक्ट में ‘पुरुष और महिला’ के स्थान पर ‘व्यक्ति’ और पति और पत्नी की जगह जीवनसाथी करता है तो गोद लेने, उत्तराधिकार आदि के कानूनों में भी परिवर्तन करना होगा। साथ ही फिर ये मामला पर्सनल लॉ तक जा पहुंचेगा कि इन सभी कानूनों के तहत लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से एक समान लिंग वाले जोड़े में पुरुष और महिला कौन होंगे? फिर गोद लेने, भरण- पोषण, घरेलू हिंसा से सुरक्षा, तलाक आदि के अधिकारों के प्रश्न भी उठेंगे।
CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने माना कि तीन दिक्कतें होंगी- जिसमें पहला यह कि कानून को पूरी तरह फिर से लिखना शामिल होगा, दूसरा सार्वजनिक नीति के मामलों में हस्तक्षेप के समान होगा, तीसरा यह पर्सनल लॉ के दायरे में भी हस्तक्षेप करेगा और अदालत स्पेशल मैरिज एक्ट और पर्सनल लॉ के बीच परस्पर क्रिया से बच नहीं सकती है।
दुनिया के 34 देशों में वैध
केंद्र ने ये भी कहा है कि दुनिया भर में महज 34 देशों ने सेम सेक्स मैरिज को वैध बनाया है। इनमें से 24 देशों ने इसे विधायी प्रक्रिया के माध्यम से, जबकि 9 ने विधायिका और न्यायपालिका की मिश्रित प्रक्रिया के माध्यम से किया। जबकि दक्षिण अफ्रीका अकेला देश है जहां इस प्रकार के विवाहों को न्यायपालिका द्वारा वैध किया गया है।
केंद्र के अनुसार अमेरिका और ब्राजील में मिश्रित प्रक्रिया को अपनाया गया था। विधायी प्रक्रिया के माध्यम से समान-लिंग विवाह को वैध बनाने वाले महत्वपूर्ण देश यूके, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, फ्रांस, कनाडा, स्विट्जरलैंड, स्वीडन, स्पेन, नॉर्वे, नीदरलैंड, फिनलैंड, डेनमार्क, क्यूबा और बेल्जियम हैं।