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जातक के जीवन में शनि का प्रभाव और दुष्प्रभाव, जानें कैसी है शनिदेव की प्रकृति

On: June 20, 2025
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Shanidev

शनि का प्रभाव और दुष्प्रभाव: भारतीय वैदिक ज्योतिष में नौ ग्रहों का विशेष महत्व है। इन ग्रहों में शनि को न्यायधीश, दंडाधिकारी और कर्मफलदाता के रूप में जाना जाता है। शनि का प्रभाव जीवन में गहराई, संघर्ष, स्थायित्व, अनुशासन और न्याय का प्रतीक होता है। परंतु यही शनि जब कुंडली में प्रतिकूल स्थिति में होता है, तो यह व्यक्ति को अनेक कठिनाइयों, बाधाओं और मानसिक कष्टों से भी गुजरवाता है। इस लेख में हम जानेंगे कि शनि ग्रह का जातक के जीवन में क्या महत्व है, इसके सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव क्या हैं, और शनि की दशा, साढ़ेसाती, ढैय्या आदि के फल किस प्रकार होते हैं।


शनि का परिचय:

शनि एक क्रूर ग्रह माने जाते हैं, परंतु यह पूरी तरह से अशुभ नहीं हैं। यह कर्म का फल देने वाले ग्रह हैं। शनि को कर्म, दंड, अनुशासन, विलंब और न्याय से जोड़कर देखा जाता है। शनि देव सूर्य पुत्र हैं तथा छाया (संवर्णा) उनकी माता हैं। इनका वाहन कौआ होता है और इन्हें पश्चिम दिशा का स्वामी माना गया है।

शनि की राशि मकर (Capricorn) और कुंभ (Aquarius) होती है। तुला (Libra) में यह उच्च के और मेष (Aries) में नीच के माने जाते हैं।


शनि की गति और गोचर:

शनि एक मंदगामी ग्रह है जो एक राशि में लगभग ढाई वर्ष तक स्थित रहता है। एक चक्र पूरा करने में शनि को लगभग 29.5 वर्ष लगते हैं। जब शनि किसी व्यक्ति की जन्म राशि से बारहवीं, पहली और दूसरी राशि में गोचर करता है, तब इसे साढ़ेसाती कहा जाता है, जो कुल 7.5 वर्षों तक चलती है। इसके अतिरिक्त जब शनि चतुर्थ या अष्टम भाव में गोचर करता है तो इसे शनि की ढैय्या कहा जाता है।


शनि के शुभ प्रभाव:

1. अनुशासन और परिश्रम:

शनि जातक को परिश्रमी बनाता है। ऐसे लोग कार्य के प्रति गंभीर होते हैं और मेहनत से सफलता प्राप्त करते हैं।

2. स्थायित्व और गहराई:

शनि का शुभ प्रभाव व्यक्ति के विचारों में गहराई और कार्यों में स्थायित्व लाता है। ऐसे व्यक्ति दीर्घकालिक योजनाएं बनाने और उन्हें पूरा करने में सक्षम होते हैं।

3. न्यायप्रियता:

शनि जातक को न्यायप्रिय बनाता है। ऐसे व्यक्ति जीवन में न्याय और सच्चाई के मार्ग पर चलने की प्रवृत्ति रखते हैं।

4. धैर्य और संयम:

शनि जातक को संयमित बनाता है। चाहे जीवन में कितनी भी कठिनाई हो, यह ग्रह व्यक्ति को धैर्य बनाए रखने की शक्ति देता है।

5. गूढ़ विज्ञानों की रुचि:

शनि का प्रभाव होने पर व्यक्ति गूढ़ और रहस्यमयी विषयों जैसे ज्योतिष, तंत्र, मनोविज्ञान, और दर्शन में रुचि रखता है।


शनि के अशुभ प्रभाव:

1. विलंब और बाधाएं:

शनि जब कुंडली में अशुभ स्थिति में होता है या शत्रु भाव में होता है, तो जातक के कार्यों में विलंब होता है। कार्य आरंभ करने के बाद रुकावटें आती हैं।

2. अवसाद और अकेलापन:

शनि मानसिक तनाव, अकेलापन और अवसाद उत्पन्न कर सकता है। ऐसे व्यक्ति अधिक गंभीर और अंतर्मुखी हो सकते हैं।

3. आर्थिक हानि:

यदि शनि कमजोर या पीड़ित हो, तो व्यक्ति को आर्थिक कठिनाइयों, कर्ज या व्यापार में हानि का सामना करना पड़ सकता है।

4. स्वास्थ्य समस्याएं:

शनि के कारण गठिया, हड्डियों से संबंधित रोग, त्वचा विकार, लकवा, मानसिक तनाव जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

5. दूसरों से कटाव:

शनि के प्रभाव से व्यक्ति सामाजिक रूप से अकेला पड़ सकता है। पारिवारिक और सामाजिक संबंधों में कटुता आ सकती है।


शनि की दशा और अंतर्दशा:

शनि की महादशा 19 वर्षों की होती है। यदि यह दशा कुंडली में शुभ भाव में बैठे शनि की हो, तो व्यक्ति जीवन में स्थिरता, पद-प्रतिष्ठा, समृद्धि और सफलता प्राप्त करता है। परंतु यदि यह दशा पाप प्रभाव में हो, तो जीवन में समस्याएं उत्पन्न होती हैं।

शनि की अंतर्दशा अन्य ग्रहों की महादशा में भी विशेष प्रभाव डालती है। विशेषतः चंद्रमा, मंगल और राहु की महादशा में यदि शनि की अंतर्दशा चले तो मानसिक अशांति, आर्थिक संकट और रोग हो सकते हैं।


साढ़ेसाती का प्रभाव:

साढ़ेसाती तीन चरणों में विभाजित होती है:

  1. प्रथम चरण (जन्म राशि के पहले भाव में शनि): मानसिक और पारिवारिक तनाव।
  2. द्वितीय चरण (जन्म राशि में शनि): स्वास्थ्य और आर्थिक परेशानियाँ।
  3. तृतीय चरण (जन्म राशि के दूसरे भाव में शनि): सामाजिक और व्यावसायिक कठिनाइयाँ।

परंतु यदि शनि योगकारक हो और शुभ ग्रहों से दृष्ट हो, तो यह समय व्यक्ति के लिए आध्यात्मिक विकास और परिपक्वता का समय भी हो सकता है।


शनि की ढैय्या:

ढैय्या भी शनि का एक प्रभावशाली समय होता है जो विशेष रूप से चतुर्थ (चौथे) और अष्टम (आठवें) भाव में गोचर के समय होता है। यह ढाई वर्षों तक चलता है और जातक के जीवन में संघर्ष, स्वास्थ्य समस्याएँ या मानसिक तनाव ला सकता है।


उपाय और शांति के उपाय:

शनि के अशुभ प्रभाव को कम करने हेतु उपाय:

  1. हनुमान जी की उपासना: शनिवार को हनुमान चालीसा या बजरंग बाण का पाठ करें।
  2. शनिवार का व्रत: तेल, नमक, मसाले रहित भोजन लें और शनि देव की पूजा करें।
  3. काली वस्तुओं का दान: काला तिल, काली उड़द, कंबल, लोहा आदि शनिवार को दान करना शुभ होता है।
  4. शनि मंत्र का जाप:
    1. “ॐ शं शनैश्चराय नमः”
    1. “नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्। छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥”
  5. पीपल की पूजा: शनिवार को पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाएं और दीपक जलाएं।
  6. नीलम रत्न (Blue Sapphire): योग्य ज्योतिषी की सलाह से ही धारण करें। यह अत्यंत प्रभावशाली रत्न है।

शनि की कृपा और प्रसिद्ध उदाहरण:

कई महापुरुषों की कुंडली में शनि मजबूत रहा है, जैसे:

  • गौतम बुद्ध: गहन चिंतन और त्याग का प्रतीक।
  • डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम: परिश्रम, संयम और सफलता का आदर्श उदाहरण।
  • अमिताभ बच्चन: साढ़ेसाती के दौरान जीवन में भारी संघर्ष, परंतु फिर महान सफलता।

यह उदाहरण दिखाते हैं कि शनि का कठोर समय व्यक्ति को तराशकर हीरा बना देता है — यदि वह धैर्य और प्रयास से डटा रहे।


ऐसे में जातक को शनि को डरना नहीं चाहिए। यह समझने और सम्मान देने का ग्रह माना गया है। यह हमारे कर्मों का दर्पण है। यदि हम अपने जीवन में अनुशासन, ईमानदारी और सेवा की भावना रखें, तो शनि की कृपा से हमें स्थायित्व, सम्मान और सफलता मिल सकती है। शनि का उद्देश्य हमें दंड देना नहीं, बल्कि हमारे जीवन को दिशा देना होता है।

शनि वह शिक्षक है जो परीक्षा पहले लेता है और पाठ बाद में सिखाता है। यदि हम इस ग्रह के संकेतों को समझें, तो हम अपने जीवन को एक नई दिशा और ऊर्जा दे सकते हैं।

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