महासमुंद.भारतीय सांस्कृतिक निधि इन्टैक महासमुन्द अध्याय के तत्वावधान में प्रखर चिंतक,पत्रकार व इन्टैक छत्तीसगढ़ राज्य अध्याय के संस्थापक स्व. ललित सुरजन की पांचवी पुण्य तिथि पर दो दिसम्बर को स्थानीय देशबन्धु कार्यालय में श्रद्धांजलि सभा एवं विरासत पर आधारित विचार-गोष्ठी का आयोजन हुआ।
जिसमें समकालीन समाज, साहित्य, कला और संस्कृति पर केन्द्रित मासिक पत्रिका अक्षर पर्व के दिसम्बर 2017 के अंक में स्व. ललित सुरजन का लिखा विरासत आधारित प्रस्तावना लेख पर विचार – गोष्ठी हुई। सर्व प्रथम सह-संयोजक बन्धु राजेश्वर खरे ने लेख का पठन किया।
इस पर अपना विचार रखते हुए संयोजक दाऊलाल चन्द्राकर ने कहा कि स्वयं ललित सुरजन जी विरासत को लेकर चुप बैठने वालों में से नहीं थे। वे हमेशा मुखर रहे तथा लोगों को जागृत करते रहे। वे कहते थे कि विरासत के प्रति लगाव बढ़ाने के लिए आम जनता को भलीभांति शिक्षित किया जाना चाहिए। उन्हे ये समझ आये कि विरासतों का संरक्षण उसके अपने हित में तथा आने वाली पीढ़ियों के हित में है।
चर्चा को आगे बढ़ाते हुए एप्सो के जिलाध्यक्ष प्रमोद तिवारी ने कहा कि सत्ता ही विरासतों को नष्ट करने पर तुली है। विकास के नाम पर विनाश का रूप दे रही है। उद्योग धंधों के लिए जंगल तबाह किये जा रहे हैं और वन्यप्राणी आबादी की ओर भटक रहे हैं जिसके परिणाम स्वरुप हाथी मानव द्वंद एक नयी समस्या पैदा हो गई है। उन्होंने कहा कि आदिवासी चौड़ी सड़क नहीं पगडंडी पर चलना पसंद करते हैं ताकि हमारी विरासत सुरक्षित रहे।
पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी एवं कवियित्री सौरिन चन्द्रसेन ने गोष्ठी में भाग लेते हुए कहा कि स्व. ललित सुरजन की जीवन शैली से सभी परिचित व प्रभावित थे। लेख में ललित जी ने कहा है कि इतिहास और विरासत दो अलग अलग विषय हैं। इतिहास में जो सुन्दर है वही विरासत के रूप में मान्य है। इतिहास, कथा- कहानी, प्रकृति और मानव निर्मित विरासतों को संरक्षित करने ललित का यह प्रस्तावना लेख हमेशा जागरूक व प्रेरित करता रहेगा ।
गोष्ठी को गति देते हुए वरिष्ठ पत्रकार बाबूलाल साहू ने कहा कि आधुनिकता के नाम पर बस्तर जैसे सुदूर वनांचल में विरासत धीरे धीरे लुप्त होती जा रही है। इससे बस्तर का हाट- बाजार भी खासे प्रभावित है। पान- पत्तों का स्थान आज प्लास्टिक उत्पादों ने ले लिया है। बस्तर की भोजन-संपदा विरासतों में भी काफी बदलाव देखा जा रहा है। जो चिंतन और चिंता का विषय है।इस परिपेक्ष्य में स्व.ललित सुरजन जी के लेख में व्यक्त विचारों को जन जन तक पहुंचाना उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
प्रस्तावना लेख के प्रारंभ में स्व .सुरजन ने कांकेर की अरबों-खरबों साल पुरानी पहाड़ियों पर मानवीय हस्तक्षेप का जिक्र किया जो काफी चिंतनीय है।उक्त विचार इन्टैक के आजीवन सदस्य रघुनाथ सिन्हा ने व्यक्त किया. श्री सिन्हा ने आगे कहा कि विरासत प्राकृतिक हो या मानव निर्मित,इन्हें विकृत करना निंदनीय है। इसे जन जागरूकता के द्वारा रोकना होगा।
कार्यक्रम की शुरुआत में स्व.सुरजन जी की तस्वीर पर श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया एवं समापन में उन्हे मौन श्रद्धांजलि दी गई । इस अवसर पर पत्रकार पोषण कन्नौजे, लक्ष्मी चन्द्राकर,महेन्द्र यादव, टोगेश साहू, प्रकाश साहू एवं अन्य गणमान्य उपस्थित रहे। वरिष्ठ पत्रकार सालिकराम कन्नौजे ने आभार व्यक्त किया।











