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Ketu Mahadasha : केतु की इस ग्रह के साथ युति जातक को देती है राजसी सुख

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Ketu Mahadasha Effect in Hindi: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार केतु को छाया व पाप ग्रह माना गया है। केतु को वैराग्य, मोक्ष, आध्यात्म और तंत्र-मंत्र का कारक माना गया है। ऐसा माना जाता है कि जिस जातक पर केतु का बुरा प्रभाव हो दरिद्र होते देर नहीं लगती है, लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता है कि केतु बुरा फल ही प्रदान करे। यह इस बात पर निर्भर करता है कि जातक की कुंडली में केतु किस स्थिति में और कौन से ग्रह के साथ है। उसी के अनुसार वह जातक को उसके अनुरूप प्रतिफल प्रदान करता है। 

कुंडली में अगर इस भाव में केतु हो तो

ज्योतिष शास्त्रियों के अनुसार, यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में केतु अशुभ स्थिति में हो तो उस व्यक्ति को जीवनभर कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कारोबार में नुकसान होता है और करियर में उतार चढ़ाव, बार-बार असफलताओं का सामना करना पड़ता है। 

माना जाता है कि अगर जन्मकुंडली में केतु ग्रह की ओर से कालसर्प दोष का निर्माण हो रहा हो तो उस व्यक्ति के पैरों में दिक्कत आ जाती है। उसे घुटनों में दर्द या पैरों के पतलेपन का सामना करना पड़ जाता है। ननिहाल पक्ष की ओर से उसे पर्याप्त प्यार और सम्मान प्राप्त नहीं होता। काम अटकते हैं। मन में शांति और चैन नहीं रहता।

केतु की महादशा का जातक के जीवन पर प्रभाव?

ज्योतिष विशेषज्ञों के मुताबिक, यदि कुंडली में केतु ग्रह की स्थिति शुभ स्थिति में है तो फिर हर कार्य आसानी से होते चले जाते हैं। ज्योतिष शास्त्र के असार किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में केतु का तृतीय, पंचम, षष्टम, नवम और द्वादश स्थान में होना जातक को अच्छे परिणाम देता है। यानी कि जातक जो भी काम करता है, उसमें उसे शुभ फल व सफलता हासिल होते हैं। 

केतु व गुरु की युति का प्रभाव?

कुंडली में अगर केतु और देव गुरु बृहस्पति की युति बन जाती है तो इससे कुंडली में राजयोग (Rajyog) का निर्माण होता है। यह जातक को अध्यात्म के मार्ग की ओर ले जाता है और मानसिक शांति का अनुभव करता है। वहीं केतु के दशम भाव में विराजमान होने पर संबंधित व्यक्ति ज्योतिष विद्या में मान-सम्मान हासिल करता है। केतु की यह महादशा जातकों के जीवन को खुशी से भर देती है।